प्रदेश में जारी राजनीतिक उठापटक के बीच दिग्विजय सिंह ने ट्वीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा- महात्मा गांधी को मारने के लिए नाथूराम गोडसे ने जिस रिवाॅल्वर का इस्तेमाल किया, उसे ग्वालियर के परचुरे ने उपलब्ध कराया था। दिग्विजय ने ट्वीट में जिन परचुरे का नाम लिया, उनका पूरा नाम डॉ. डीएस परचुरे था। वह ग्वालियर में एक हिंदू संगठन के प्रमुख थे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 30 जनवरी 1948 की शाम 5 बजे प्रार्थना सभा के लिए निकले थे, तभी उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वह दिल्ली के बिड़ला भवन में शांती सभा के लिए गए थे। गोडसे ने उनके पैर छुए और उनके सीने में तीन गोलियां मार दी थीं।
- 20 जनवरी 1948 में भी गांधी को मारने की साजिश रची गई थी। नाकाम रहने पर गोडसे भागकर ग्वालियर आ गया था। इस बार उसने साथियों की जगह खुद बापू को मारने के बारे में सोचा था।
- गोडसे ने ग्वालियर में स्वर्ण रेखा नदी के किनारे पिस्टल से फायरिंग की प्रैक्टिस की थी। इसके बाद वह दिल्ली रवाना हुआ।
- गांधी की हत्या लिए उसने शहर में हिंदू संगठन चला रहे डॉ. डीएस परचुरे के सहयोग से अच्छी पिस्टल की तलाश शुरू की।
- सिंधिया रियासत में हथियार के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती थी। इसलिए उसने ग्वालियर से पिस्टल खरीदी थी।
- डॉ. परचुरे के परिचित गंगाधर दंडवते ने जगदीश गोयल की पिस्टल का सौदा नाथूराम से 500 रुपए में कराया था।
ग्वालियर से खरीदी थी बंदूक
- ग्वालियर से खरीदी पिस्टल से नाथूराम ने 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या कर दी थी। 10 दिन ग्वालियर में रहकर गोडसे और उसके सहयोगियों ने हत्या की तैयारी की थी।
- सिंधिया सेना के अफसर लाए थे इटालियन पिस्टल
- 1942 में सैकेंड वर्ल्ड वाॅर के दौरान ग्वालियर की एक सैनिक टुकड़ी के कमांडर ले.ज.वीबी जोशी की कमान में अबीसीनिया में मोर्चे पर तैनात की गई थी।
- मुसोलिनी की सेना के एक दस्ते ने इस टुकड़ी के सामने हथियारों समेत समर्पण कर दिया था। इन्हीं हथियारों में इटालियन दस्ते के अफसर की 1934 में बनी 9mm बरेटा पिस्टल भी थी।
- इसे खुद ले.ज.जोशी ने अपने पास रख लिया था। बाद में इसे जगदीश गोयल ने ले.ज.जोशी के वारिसों से खरीद लिया था।
- बरेटा पिस्टल और गोलियां खरीदकर नाथूराम अपने साथी आप्टे के साथ दादर-अमृतसर पठानकोट एक्प्रेस में बैठ कर दिल्ली रवाना हो गया था।
गोली मारने के बाद चिल्लाया 'पुलिस-पुलिस'
- नाथूराम गोडसे ने जेल में मिलने गए भाई गोपाल गोडसे को बताया था कि फायर करने के बाद उसने कसकर पिस्टल को पकड़े हुए अपने हाथ को ऊपर उठाए रखा और 'पुलिस-पुलिस' चिल्लाया।
- गोडसे ने कहा कि वह चाहता था कि कोई यह देखे कि यह योजना बनाकर और जानबूझ कर किया गया काम था।
- उसने गोपाल गोडसे को यह भी बताया कि वह यह भी नहीं चाहता था कि कोई यह कहे कि उसने घटनास्थल से भागने या पिस्टल फेंकने की कोशिश की।